Sunday, July 8, 2012

रात बिजली की हर कड़क
ऐसे लगी जैसे मेरी किस्मत
मेरी अन्यमनस्कता पर चीख रही हो
अपनी दांतों  से दीवारों को झलकाते हुए .

हवा यूँ भटकती रही जैसे
कोई अभिसारिका अपने
प्रेमी की खिड़कियाँ थपथपा रही हो .

बूंदों की बौछार मेरे मन पर
पुराने पड़े सपनों की मैल धोती रही
और मैं एक निस्तब्ध समाधि में
जगा रहा . 

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