Sunday, July 15, 2012

तेरी तन्मयता का कोई रहा राज गहरा होगा ,
दूर ख्यालों का एक सागर कहीं शांत ठहरा होगा .

ऐसा भी एक दिन आयेगा दीवानों की बस्ती में
गली-गली को कौन पूछता , साँसों पर पहरा होगा .

जिसकी आँखों के आगे बस झील दिखाई देती है ,
उसकी चारों ओर  यकीं  मानो केवल सहरा होगा .

दूरी या फिर अब्र कह्कसाँ  रहे रोकते हों लेकिन ,
अंगडाई लेती दरिया में चाँद रात उतरा होगा .

वैसे तो जो मिले कभी थे , टीस  नहीं उनकी बाकी ,
एक जख्म सहला कर देखो  लेकिन कहीं हरा होगा .

अरसे से अपनी प्यासों को पीकर हूँ मयखाने में ,
पैमाने को लगता है जी मेरा किन्तु भरा होगा .

देखा था लोगों ने वह तो सपने में मुस्काता था ,
लम्हा तेरे साथ एक शायद कोई गुजरा होगा .

मेरा दिल जो नहीं सुन सका तेरे नगमों की दस्तक ,
खोया था वह नहीं कहीं बस थोडा-सा बहरा होगा .

आता हूँ नित यही सोचकर अंतर्नत (इन्टरनेट) के आँगन में ,
मिल जाएगा कोई साथी जो भूला बिसरा होगा . 

Sunday, July 8, 2012

रात बिजली की हर कड़क
ऐसे लगी जैसे मेरी किस्मत
मेरी अन्यमनस्कता पर चीख रही हो
अपनी दांतों  से दीवारों को झलकाते हुए .

हवा यूँ भटकती रही जैसे
कोई अभिसारिका अपने
प्रेमी की खिड़कियाँ थपथपा रही हो .

बूंदों की बौछार मेरे मन पर
पुराने पड़े सपनों की मैल धोती रही
और मैं एक निस्तब्ध समाधि में
जगा रहा .