Saturday, June 25, 2011

न जाने कब

न जाने क्या हुआ कैसे कहाँ पर खो गयी कविता ।
गर्म इस दोपहर में छोड़ मुझको सो गयी कविता॥

अभी तो वक्त था कि साथ मिलकर गुनगुनाते हम ।
दरख्तों के घने सायों को अपना घर बनाते हम ॥
कैद अनजान कमरे में किसी क्यों हो गयी कविता ।
न जाने ............................................................... ॥

जरा आवाज देकर देखना तेरे मनाने से ।
कहीं आ जाय फिर बाहर वो जादू इक बहाने से ॥
कहीं जलकर नहीं देखो तुम्हीं से तो गयी कविता ।
न जाने ........................................................................ ॥

कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
ये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।
न जाने ................................................................................ ॥

Friday, June 3, 2011

उदास

छूना चाहती है मुझे


कोई उदास छट पटाहट ,


लेकर तेरा नाम तन्हाइयों में


उतर आती है


एक चिरसंगिनी की तरह


थाम लेती है


मेरा दामन ।



लोग कहते हैं


बचो इन उदासियों से


पर


मैं विवश हूँ ;


इन उदासियों में तेरी खुसबू है


एक अनमोल


दौलत की तरह हैं


मेरे पास


तुमसे मिली


ये उदासियाँ !