न जाने क्या हुआ कैसे कहाँ पर खो गयी कविता ।
गर्म इस दोपहर में छोड़ मुझको सो गयी कविता॥
अभी तो वक्त था कि साथ मिलकर गुनगुनाते हम ।
दरख्तों के घने सायों को अपना घर बनाते हम ॥
कैद अनजान कमरे में किसी क्यों हो गयी कविता ।
न जाने ............................................................... ॥
जरा आवाज देकर देखना तेरे मनाने से ।
कहीं आ जाय फिर बाहर वो जादू इक बहाने से ॥
कहीं जलकर नहीं देखो तुम्हीं से तो गयी कविता ।
न जाने ........................................................................ ॥
कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
ये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।
न जाने ................................................................................ ॥