Sunday, January 13, 2013

chand saa

चाँद सा चेहरा तुम्हारा और निगाहें तीर-सी ,
घायलों को कैद करती जुल्फ की जंजीर सी।
मैं नज़र से पी रहा हूँ मय तुम्हारे हुस्न का
आशिकी ऐसी बना दे रब मेरी तकदीर सी।
तुम न गर होती तो क्या होता मिजाजे इश्क का
कौन लगती जमाने को हूर सी या हीर सी।
सुर्ख लब तेरे कि मेरे होठ प्यासे खुरदरे
मुन्तजिर को दीखती हो खाब में जागीर सी।