Tuesday, July 26, 2011

थरथराती उदासियाँ लेकर

थरथराती उदासियाँ लेकर , तेरी यादों की दास्ताँ लेकर ,
जा रहे गुमशुदा जमाने से , जैसे मुट्ठी में अपनी जाँ लेकर ।
मैंने सजदे किये बताऊँ क्या , नाम तेरा कहाँ - कहाँ लेकर ,
चुभती आंखों में हैं कई सपने , बिखरे शीशे का एक जहाँ लेकर ।
वैसे तन्हा चले थे महफ़िल से , अपनी आहों का आसमाँ लेकर ।
पास आती है बारहा ये हवा , तेरी साँसों की दास्ताँ लेकर ।

Saturday, July 23, 2011

जब से सुधरे

जब से सुधरे हुए जानम मुझे जमाने हुए ,
तब से सचमुच बड़े बेखौफ ये पैमाने हुए ।
सुबह से दोपहर तक मुझको आया ही न शहूर ,
शाम ढलने लगी तो जिन्दगी के माने हुए ।
गुजर गए मेरी गलियों से अजनबी की तरह ,
कभी अपने थे वो जो आजकल बेगाने हुए ।
दर्दे दिल का न अब कोई नया अंदाजे बयां ,
यार बब्बर के सारे शेर अब पुराने हुए ।
न कोई शुक्रिया , न दाद ,वाह! वाह! नहीं ,
जिन्दगी हम तो तेरे दर्द के दीवाने हुए ।