Saturday, July 23, 2011

जब से सुधरे

जब से सुधरे हुए जानम मुझे जमाने हुए ,
तब से सचमुच बड़े बेखौफ ये पैमाने हुए ।
सुबह से दोपहर तक मुझको आया ही न शहूर ,
शाम ढलने लगी तो जिन्दगी के माने हुए ।
गुजर गए मेरी गलियों से अजनबी की तरह ,
कभी अपने थे वो जो आजकल बेगाने हुए ।
दर्दे दिल का न अब कोई नया अंदाजे बयां ,
यार बब्बर के सारे शेर अब पुराने हुए ।
न कोई शुक्रिया , न दाद ,वाह! वाह! नहीं ,
जिन्दगी हम तो तेरे दर्द के दीवाने हुए ।

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