Saturday, June 25, 2011

न जाने कब

न जाने क्या हुआ कैसे कहाँ पर खो गयी कविता ।
गर्म इस दोपहर में छोड़ मुझको सो गयी कविता॥

अभी तो वक्त था कि साथ मिलकर गुनगुनाते हम ।
दरख्तों के घने सायों को अपना घर बनाते हम ॥
कैद अनजान कमरे में किसी क्यों हो गयी कविता ।
न जाने ............................................................... ॥

जरा आवाज देकर देखना तेरे मनाने से ।
कहीं आ जाय फिर बाहर वो जादू इक बहाने से ॥
कहीं जलकर नहीं देखो तुम्हीं से तो गयी कविता ।
न जाने ........................................................................ ॥

कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
ये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।
न जाने ................................................................................ ॥

7 comments:

  1. कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
    ये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
    हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।

    ye to aap galat kah rahe hain kavita yadi so jati to yah abhivyakti ke roop me yahan kaise aati.it's only joke.bahut sundar bhavabhiyakti.badhai.

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  2. dhanyawaad shaliniji , par kavita ko chhedate to rahana hi padata hai .

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  3. वो ही तो मेरी कविता है वो छोड़ गयी तो शब्द खो जाते हैं ..

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  4. आपसे सहमत हूँ ..कविता भावप्रधान होनी चाहिए ..मैं कोशिश करुँगी..आप बहुत अच्छा लिखते है.हृदयस्पर्शी...भावपूर्ण ..

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  5. dhanyawaad! Amritajee, aap bahut hee sundar likhatee hain .

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