Saturday, March 24, 2012

तू न मिलना

तू न मिलना मेरे दामन से जमाने की तरा ,
चाहता आया हूँ मैं तुझको दीवाने की तरा ।
तेरी तनहाइयों के और कई साथी हैं ,
अपनी खामोशियों में मैं हूँ बेगाने तरा ।
ऐसा लबरेज हूँ जानम कि तेरे छूने से ,
छलक उठूंगा एक नादान पैमाने की तरा ।

Tuesday, March 6, 2012

तुम तुम हो

उस दिन
अपराह्न -सा
और मौसम वासंती
कुछ-कुछ उसी दिन सा बस
और तुम्हारी सुडौल , पतली पर मजबूत एवं लचीली
स्निग्ध एवं शीतोष्ण त्वचा वाली कमर को अपनी दोनों हथेलिओं
में संभाले
तेरी अपलक उद्दात चितवन को निहारता
यह सोचने लगा था कि
तुम सिर्फ देह नहीं हो ।
फिर लगा
मैं गलत हूँ ।
जब देह तुम्हारी हो
तो
उसके आगे
'सिर्फ ' लगा देने का दुस्साहस
कम -से-कम मैं तो नहीं कर सकता ।
तुम तुम हो ।