Sunday, January 30, 2011

लग रहा है यूँ लाजबाब कोई

लग रहा है यूँ लाजबाब कोई ,
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।
चौदवीं रात बादलों में छुपा
झांकता है ज्यों माहताब कोई ।
मखमली दूब पे पसरता ज्यों
सुबह सुबह का आफताब कोई ।
मेरी आँखों में यूँ उतरता है
दिल में ज्यों मचलता हो ख्वाब कोई ।
लग रहा है यूँ लाजबाब कोई ,
जैसे खिलता हुआ गुलाब कोई ।

Thursday, January 6, 2011

अभी तो धुंद है

सुबह यह सर्द है ,
धुंद है भारी ,
भटकती सूर्य की किरणें
कहीं पर खो गयीं हैं ।
बुझा चल फ़ोन (मोबाइल ) पर अपने
अभी एलार्म की घंटी
ये बालाएं पुनः
सुख नींद-सी में
सो गयी हैं ।
आपकी याद आती है
लिए एक ताजगी -सी ;
कहीं पर आप भी होंगी
यूँ ही आधी जगी -सी ।

कुहासा है मगर
कुछ पक्षियों के पर
पुनः हिलने लगे हैं ।
ख्यालों में ही शायद
आप-हम मिलने लगे हैं ।

तुरत अब धूप होगी
दूब पर मोती बिछे होंगे ,
अगर हम मिल गए तो
जिन्दगी के सिलसिले होंगे।