Wednesday, December 29, 2010

अभी तो धुंद है

इस सुबह तो सर्द है ,
धुंद है भारी
भटकती सूर्य की किरणें
कहीं पर खो गयीं हैं ।
बुझा चल फोन (मोबाईल )पर अपने
अभी एलार्म की घंटी
ये बालाएं पुनः
सुख नींद सी में सो गयी हैं ।

आपकी याद आती है
लिए एक ताजगी सी ;
कहीं पर आप भी होंगी
यूँ ही आधी जगी सी ।

कुहासा है मगर
कुछ पक्षियों के पर
पुनः हिलने लगे हैं
ख्यालों में ही शायद
आप-हम मिलने लगे हैं ।
तुरत अब धू प होगी
दूब पर मोटी बिछे होंगे ,
अगर हम मिल गए तो
जिन्दगी के सिलसिले होंगे ।










9

No comments:

Post a Comment