उस दिन
अपराह्न -सा
और मौसम वासंती
कुछ-कुछ उसी दिन सा बस
और तुम्हारी सुडौल , पतली पर मजबूत एवं लचीली
स्निग्ध एवं शीतोष्ण त्वचा वाली कमर को अपनी दोनों हथेलिओं
में संभाले
तेरी अपलक उद्दात चितवन को निहारता
यह सोचने लगा था कि
तुम सिर्फ देह नहीं हो ।
फिर लगा
मैं गलत हूँ ।
जब देह तुम्हारी हो
तो
उसके आगे
'सिर्फ ' लगा देने का दुस्साहस
कम -से-कम मैं तो नहीं कर सकता ।
तुम तुम हो ।
कलम तोड़ कर रखदी आपने। साधुवाद।
ReplyDeleteDhanywaad!
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