न जाने क्या हुआ कैसे कहाँ पर खो गयी कविता ।
गर्म इस दोपहर में छोड़ मुझको सो गयी कविता॥
अभी तो वक्त था कि साथ मिलकर गुनगुनाते हम ।
दरख्तों के घने सायों को अपना घर बनाते हम ॥
कैद अनजान कमरे में किसी क्यों हो गयी कविता ।
न जाने ............................................................... ॥
जरा आवाज देकर देखना तेरे मनाने से ।
कहीं आ जाय फिर बाहर वो जादू इक बहाने से ॥
कहीं जलकर नहीं देखो तुम्हीं से तो गयी कविता ।
न जाने ........................................................................ ॥
कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
ये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।
न जाने ................................................................................ ॥
कभी मैं सोचता हूँ यह भला कैसी पहेली है ।
ReplyDeleteये कविता दोस्त है मेरी ,कि यह तेरी सहेली है ।
हमारे बीच धागे प्रेम के क्यों बो गयी कविता ।
ye to aap galat kah rahe hain kavita yadi so jati to yah abhivyakti ke roop me yahan kaise aati.it's only joke.bahut sundar bhavabhiyakti.badhai.
dhanyawaad shaliniji , par kavita ko chhedate to rahana hi padata hai .
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ReplyDeleteवो ही तो मेरी कविता है वो छोड़ गयी तो शब्द खो जाते हैं ..
ReplyDeletethanks mr nasawa!
ReplyDeleteआपसे सहमत हूँ ..कविता भावप्रधान होनी चाहिए ..मैं कोशिश करुँगी..आप बहुत अच्छा लिखते है.हृदयस्पर्शी...भावपूर्ण ..
ReplyDeletedhanyawaad! Amritajee, aap bahut hee sundar likhatee hain .
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