चाह रहा फिर से मिल जाती
गीली-सी कोई चम्बल ।
इस सुराप को सुरापिलाती
गीली -सी कोई चम्बल ॥
जब तेरी आँखों में देखा
जाने क्यों मदहोश हुआ ,
झलक रही थी उन आँखों में
नीली-सी कोई चम्बल ।
चाह ...........
तेरे निह्श्वासों की मुझको
याद कभी जब आती है ;
दिल पर छा जाती है छैल
छबीली-सी कोई चम्बल ।
चाह ................
नस- नस में बसनेवाली
हर एक रवानी चम्बल की ;
सपनों में रक्ताभ ,धवल ,
कुछ पीली-सी कोई चम्बल ।
चाह र...................
No comments:
Post a Comment