Friday, December 27, 2013

gazal

 जिसे चाहा वही महफ़िल का ताजदार हुआ ,
फिर भी मेरा नहीं वह शक्श शुक्रगुज़ार हुआ।

गए हो काँच के टुकड़े , तेरी सूरत न गयी ,
ये दिल का आईना टूटा भी कामगार हुआ। 

गया था डूबने , चुल्लू में काम चल जाता ,
भीड़ इतनी थी कि जाना मेरा बेकार हुआ।

उसकी माशूक के दिल में जगह बना डाला ,
दोस्त बब्बर का भी क्या खूब राजदार हुआ।
                                     
- डॉ  ओम प्रकाश पाण्डेय उर्फ़ बब्बर बदनाम

Thursday, May 30, 2013

shaayaree mein

शायरी में है मेरा नाम या बदनाम है मेरा,
खुदा का शुक्र है कुछ रह गया गुमनाम है मेरा ;
कई किस्से हकीकत में कई हालात में बदले ,
मगर इस बार लगता दिल हुआ नाकाम है मेरा.

कि  मुझको चाहनेवालों ज़रा ऐसी दुआ करना ,
जिसे मैं चाहता हूँ सीख ले मुझसे वफ़ा करना .

Sunday, May 12, 2013

tum

मैं बहुत खुदगर्ज़ हूँ यह जानता हूँ मैं ,
इसलिए बस दिल को अपना मानता हूँ मैं।
तुम जमाने से डरो  डरना तुम्हारा काम है ,
ज़माने की हैसियत पहचानता हूँ मैं।

Saturday, March 2, 2013

chhod diya us mahfil ko

चलो हुआ अच्छा हमने ही छोड़ दिया उस महफ़िल को ,
जो दौलत के दीवाने हैं वो क्या समझेंगे दिल को।
याराना अपना रुसवा हो जाए ये मंजूर नहीं ,
ऐसा आया मोड़ सफ़र में भूल गए हम मंजिल को।
दिल में लेकर दर्दे मुहब्बत दरिया -दरिया देख लिये ,
सारी मौजें तो शायद ही छू पाती हैं साहिल को।
हम ही थे जो ललचाती नज़रों से तुझे बुलाये थे
वरना देता कौन पता है अपना अपने कातिल को।

Sunday, January 13, 2013

chand saa

चाँद सा चेहरा तुम्हारा और निगाहें तीर-सी ,
घायलों को कैद करती जुल्फ की जंजीर सी।
मैं नज़र से पी रहा हूँ मय तुम्हारे हुस्न का
आशिकी ऐसी बना दे रब मेरी तकदीर सी।
तुम न गर होती तो क्या होता मिजाजे इश्क का
कौन लगती जमाने को हूर सी या हीर सी।
सुर्ख लब तेरे कि मेरे होठ प्यासे खुरदरे
मुन्तजिर को दीखती हो खाब में जागीर सी। 

Sunday, December 23, 2012

बार-बार एक उत्सुकता से मैंने उसे उठाया है,
ऐसे क्यों लगता है जैसे फ़ोन तुम्हारा आया है।
तेरा मेरा मिलना - जुलना सिर्फ मुसाफिरखाने तक
फिर मेरी पागल पलकों ने क्यों यह स्वप्न सजाया है।
इन नज्मों के अल्फाजों में चाहे लाख छुपाऊं मैं ,
किन्तु ज़माना पूछेगा क्या दिल को मर्ज़ लगाया है।
ऐसी ही हो अगर उधर तो एक ईशारा  कर देना ,
मैं समझूंगा खुद को खोकर मैंने भी कुछ पाया है। 

Sunday, July 15, 2012

तेरी तन्मयता का कोई रहा राज गहरा होगा ,
दूर ख्यालों का एक सागर कहीं शांत ठहरा होगा .

ऐसा भी एक दिन आयेगा दीवानों की बस्ती में
गली-गली को कौन पूछता , साँसों पर पहरा होगा .

जिसकी आँखों के आगे बस झील दिखाई देती है ,
उसकी चारों ओर  यकीं  मानो केवल सहरा होगा .

दूरी या फिर अब्र कह्कसाँ  रहे रोकते हों लेकिन ,
अंगडाई लेती दरिया में चाँद रात उतरा होगा .

वैसे तो जो मिले कभी थे , टीस  नहीं उनकी बाकी ,
एक जख्म सहला कर देखो  लेकिन कहीं हरा होगा .

अरसे से अपनी प्यासों को पीकर हूँ मयखाने में ,
पैमाने को लगता है जी मेरा किन्तु भरा होगा .

देखा था लोगों ने वह तो सपने में मुस्काता था ,
लम्हा तेरे साथ एक शायद कोई गुजरा होगा .

मेरा दिल जो नहीं सुन सका तेरे नगमों की दस्तक ,
खोया था वह नहीं कहीं बस थोडा-सा बहरा होगा .

आता हूँ नित यही सोचकर अंतर्नत (इन्टरनेट) के आँगन में ,
मिल जाएगा कोई साथी जो भूला बिसरा होगा .